* श्रीराधिकावल्लभो विजयते *
(१)व्रज नरेश थे नन्द महामति,परम दयाकर धर्मनिधान,जिनके घर में प्रकट हुए,लीला दिखलाने श्रीभगवान्.उन्हीं नन्द के परम मित्र,वृषभानु गोप थे भक्त महान,जन्म लिया था सूर्य-अंश से,बहुत बड़े थे प्रतिभावान.(२)प्रकट हुयीं उनके गृह में,श्रीकृष्णप्रिया राधारानी,धूम मची वृषभानु-पुरी में,धरा हुयी यह सुखसानी.पहुँचे गर्गाचार्य वहाँ तब,राधा-महिमा बतलायी,मुदित हुये वृषभानु गोप,यह इच्छा मन में जब आयी.(३)बोले ऋषि से विदित तुम्हें,नाता जिससे होगा जिसका,त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ बता दें,कौन सुपति होगा इसका ?नन्दलाल-गोपाल-कृष्ण ही,इनके पति हैं परम सुजान,नाता नित्य अमर दोनों का,सुनें ध्यान से हे ! मतिमान.(४)दिव्य-धाम में परम-ब्रम्ह,श्रीकृष्णचन्द्र की पटरानी,प्रकट हुयी हैं आज वही,तव गृह में श्रीराधारानी.अति सुन्दर भाण्डीर-कुञ्ज में,निर्मल कालिन्दी के तीर-व्याह करायेंगे दोनों का,जगत विधाता ही मतिधीर.